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Monday, December 20, 2010

कभी तो मुस्कुराओ..

कभी तो मुस्कुराओ 
क्यूँ रहते हरदम ग़मगीन 
बोझिल करते फिजा हसीं
आँखों के नम कोरों से 
ख़ुशी के अश्रु छलकाओ 
कभी तो मुस्कुराओ

छोटी खुशियों को कर नज़रंदाज़ 
ढूँढ़ते वही जो नहीं पास 
मृगमरीचिका से उबर
यथार्थ धरातल पर आओ 
कभी तो मुस्कुराओ

अंधेरो के साथ है रौशनी भी 
दुःख नही तो क्या ख़ुशी 
इस बात को समझ 
जीवन में अपनाओ 
कभी तो मुस्कुराओ

असंख्य कुसुम खिलाती हँसी तुम्हारी 
मुस्कान चेहरे पे लगती न्यारी 
स्वयं प्रसन्न होकर ही
दूसरो को मुस्कान दे पाओ 
इसलिए हरदम मुस्काओ

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